वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने भारतीय पेशेवरों और छात्रों के लिए बड़ी राहत की घोषणा की है। प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि जो अंतरराष्ट्रीय छात्र पहले से अमेरिका में हैं और H-1B वीज़ा के लिए प्रायोजित किए गए हैं, उन्हें हाल ही में घोषित 1 लाख डॉलर (करीब ₹90 लाख) का शुल्क नहीं देना होगा।
यह पहली बार है जब ट्रंप प्रशासन ने वीज़ा शुल्क से जुड़ी उलझनों पर औपचारिक स्पष्टीकरण दिया है। पिछले महीने जारी इस आदेश से भारतीय आईटी पेशेवरों और कंपनियों में भारी चिंता फैल गई थी।
USCIS (यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज) ने अपनी नई गाइडलाइन में स्पष्ट किया है कि यह शुल्क उन लोगों पर लागू नहीं होगा जो पहले से वैध वीज़ा पर अमेरिका में हैं, जैसे —
F-1 स्टूडेंट वीज़ा धारक,
L-1 इंटर-कंपनी ट्रांसफरीज़, और
मौजूदा H-1B वीज़ा धारक जो रिन्यूअल या एक्सटेंशन करा रहे हैं।
एजेंसी ने कहा कि “यह शुल्क 21 सितंबर 2025 की आधी रात (ET) से पहले जारी या दायर किसी भी वैध H-1B वीज़ा पर लागू नहीं होगा।”
इस स्पष्टीकरण के बाद यह भी साफ हो गया है कि H-1B वीज़ा धारक बिना किसी रोक-टोक के अमेरिका से बाहर और अंदर यात्रा कर सकते हैं, जिससे भारतीय समुदाय की एक बड़ी चिंता दूर हुई है।
क्यों प्रभावित हुए थे भारतीय पेशेवर:
अमेरिका में लगभग 3 लाख भारतीय H-1B वीज़ा पर काम कर रहे हैं, जिनमें से अधिकांश तकनीकी और सेवा क्षेत्र से जुड़े हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 70% नए H-1B वीज़ा भारतीय नागरिकों को मिलते हैं, जबकि चीनी नागरिकों का हिस्सा लगभग 11–12% है।
H-1B वीज़ा के तहत उच्च-कुशल विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में तीन साल तक काम करने की अनुमति होती है, जिसे तीन साल और बढ़ाया जा सकता है। हर साल 85,000 नए वीज़ा लॉटरी सिस्टम के जरिए जारी किए जाते हैं।
नई नीति को लेकर मची थी हलचल:
पहले वीज़ा आवेदन शुल्क $215 से $5,000 तक होता था, लेकिन ट्रंप प्रशासन द्वारा घोषित $100,000 का नया शुल्क 20 से 100 गुना अधिक था — जो कई नए कर्मचारियों की सालाना आय से भी ज़्यादा था।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि यह शुल्क “H-1B कार्यक्रम को खत्म करने जैसा कदम” साबित हो सकता है।
भारतीय-अमेरिकी समुदाय पर असर:
अमेरिका में लगभग 30 लाख भारतीय-अमेरिकी रहते हैं, जिनमें से लगभग एक-चौथाई सीधे या परोक्ष रूप से H-1B वीज़ा कार्यक्रम से जुड़े हैं।
‘The Other One Percent’ रिपोर्ट के अनुसार, H-1B वीज़ा ने भारतीय-अमेरिकियों को अमेरिका की सबसे शिक्षित और उच्च-आय वाली समुदायों में शामिल किया है।
भारतीय आईटी कंपनियाँ जैसे इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो आदि लंबे समय से इस वीज़ा का उपयोग अमेरिकी प्रोजेक्ट्स के लिए इंजीनियर भेजने में करती रही हैं। वहीं अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, और गूगल जैसी अमेरिकी कंपनियाँ भी भारतीय वीज़ाधारकों पर निर्भर हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया:
भारत में इस फैसले पर राजनीतिक विवाद भी हुआ।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया कि वे भारतीय कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने में विफल रहे, जबकि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे “ट्रंप की मोदी को दी गई जन्मदिन की भेंट” बताया।
वहीं केंद्र सरकार ने कहा कि वह नीति के प्रभावों का अध्ययन कर रही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात में भाषण के दौरान कहा कि भारत का असली शत्रु “दूसरों पर निर्भरता” है और आत्मनिर्भरता ही समाधान है।
Source: Hindustan Times
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