उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हलाल प्रमाणन (Halal Certification) को लेकर बड़ा बयान देते हुए कहा कि इस व्यवस्था के माध्यम से करीब ₹25,000 करोड़ की रकम का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों, धर्मांतरण और लव जिहाद जैसे अभियानों में किया गया है।
मुख्यमंत्री ने मंगलवार को गोरखपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि हलाल सर्टिफिकेशन किसी सरकारी संस्था द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, फिर भी इसके जरिए समानांतर आर्थिक नेटवर्क तैयार किया गया है। उन्होंने कहा —
“यह प्रमाणन न केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत है और न ही राज्य सरकार से जुड़ा है, लेकिन इसके नाम पर अरबों रुपये की वसूली की जा रही है, जिसका उपयोग देशविरोधी कामों में होता है।”
योगी आदित्यनाथ ने नागरिकों से अपील की कि वे हलाल टैग वाले उत्पादों की खरीद न करें और ऐसी वस्तुओं की पहचान कर प्रशासन को सूचित करें। उन्होंने कहा कि सरकार ने ऐसे उत्पादों की बिक्री और वितरण को राज्य में प्रतिबंधित कर दिया है।
मुख्यमंत्री ने मंगलवार को गोरखपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि हलाल सर्टिफिकेशन किसी सरकारी संस्था द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, फिर भी इसके जरिए समानांतर आर्थिक नेटवर्क तैयार किया गया है। उन्होंने कहा —
“यह प्रमाणन न केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत है और न ही राज्य सरकार से जुड़ा है, लेकिन इसके नाम पर अरबों रुपये की वसूली की जा रही है, जिसका उपयोग देशविरोधी कामों में होता है।”
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि प्रदेश में बलरामपुर जिले में हाल ही में धर्मांतरण से जुड़े एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश किया गया है, जिसमें भारी धनराशि के दुरुपयोग के प्रमाण मिले हैं। उन्होंने इसे हलाल सर्टिफिकेशन के “छद्म नेटवर्क” से जुड़ा बताया।
योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा कि वे मुख्यमंत्री बनने के बाद से ईद मिलन जैसी राजनीतिक परंपराओं को समाप्त कर चुके हैं, ताकि धार्मिक आयोजनों को राजनीति से दूर रखा जा सके।
उन्होंने कहा —
“मुख्यमंत्री आवास अब किसी धार्मिक कार्यक्रम का स्थल नहीं, बल्कि प्रशासनिक कार्यों का केंद्र है। हमारी प्राथमिकता कानून, व्यवस्था और समानता है।”
सरकार का दावा है कि हलाल सर्टिफिकेशन व्यवस्था “अवैध और अपारदर्शी” रूप से चल रही थी, जिससे गैरकानूनी आर्थिक लेनदेन को बढ़ावा मिला। इस पर अब कानूनी जांच की तैयारी चल रही है।
इस बयान के बाद प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। समर्थक इसे देशहित में उठाया गया “कड़ा लेकिन आवश्यक कदम” बता रहे हैं, जबकि विपक्ष ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कहा है।
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